shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –३

सांवला सा रंग, उभरे से नाक-नक्श, दुबला-पतला और झेंपू- सा वह युवक मुश्किल से चौबीस साल का होगा। घर की कती मोटी खादी के कपड़े और सिर पर एक-एक अंगुल के बाल, जिनके बीचोंबीच खड़ी छोटी-सी चोटी में गाँठ लगा दी गई थी। संक्षेप में सत्यव्रत सबको शास्त्री किस्म का नवयुवक लगा। और जब उसने बी.ए. में अपनी सेकंड डिवीजन बतलाई तब तो सभी ने उसकी और ऐसे घूरा जैसे उसने कोई भारी अपराध किया हो, अथवा वह झूठ बोल रहा हो।

"कॉलेज तो फटीचर ही लगता है। न बिजली है, न पंखे । डेस्क भी बाबा आदम के जमाने के हैं।" लेक्चररशिप के उम्मीदवार पाठक ने कहा। दरअसल सत्यव्रत की डिवीजन का पाठक वग़ैरा पर कोई असर न पड़ा था।

मगर असिस्टैंट टीचरी के उम्मीदवारों ने पाठक की बात को अहमियत नहीं दी । असरार की बराबर बैठे केशवप्रसाद को सत्यव्रत के प्रति अत्यधिक सहानुभूति उमड़ आई थी। उसके पास जाकर वह बोला, "आपने सेकंड डिवीजन में बी.ए. किया, फिर आप यहाँ सड़ने के लिए क्यों आ गए ?"

सत्यव्रत इस प्रश्न का कोई उत्तर न दे सका। उनके सांवले कपोलों और निश्छल आँखों में शर्म और असमर्थता का-सा भाव दौड़ गया। श्रोत्रिय ने फिर पूछा, "क्या परसेंटेज था बी.ए. में आपके मार्क्स का ?"

"उनसठ प्रतिशत। सत्यव्रत ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया। फिर उसने बताया, "अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषय लेकर मैंने बी.ए. किया है, इसी वर्ष । संस्कृत में विशेष योग्यता मिली है। " श्रोत्रिय और केशवप्रसाद की जिज्ञाना समाप्त हुई। सत्यव्रत के पास बी.ए. में अंग्रेजी न होने की बात सुनकर शायद और लोगों को भी कुछ राहत मिली क्योंकि उनके चेहरे पर फिर वही भाव लौट आया था।

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